स्नेहिल पंख
वायु के झोंके ,
हैं उल्फत की लहरें।
फूल की खुशबू,
हैं उल्फत के रोम।
समुंदर की लहरें,
हैं प्रेम की तरंगे।
पेड़ों की छांव,
हैं उल्फत की तृप्ति।
नील गगन के तारे,
हैं उल्फत की सीमाएं।
चाँदनी का अमृत,
हैं प्रेम का रसपान।
वायु के झोकों को,
तुम कैद नहीं कर सकते।
फूल की खुशबू को ,
मुट्ठी में नहीं ले सकते।
समुंदर की लहरों को ,
तेरा यंत्र नहीं सोखेगा।
पेड़ों की छाँव को,
सूखा तो नहीं सकते।
नील गगन के तारों को ,
उड़ा तो नहीं सकते।
चाँदनी के रसपान को ,
मिटा तो नहीं सकते।।
-अनुपमा उपाध्याय त्रिपाठी
*we do not own the illustrations. Art by Deborah Milton.
Wow
जवाब देंहटाएंThanks 😊
जवाब देंहटाएंsunder prastuti
जवाब देंहटाएं😊 Thanks
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