नव युग की शुरुआत
नव प्रभात का सूरज
निकस ब्योम आँचल से।
बादलो को चीरता
प्रकाश को चुनता।
राह की कठिन तपिश से
मुश्किलों से जूझता।
संघर्ष की पीड़ा
चेतना को चीरता।
नव प्रभात बन कर
जीवन को जोड़ता।
चेतना की छाया में
पथिक होता है श्रांत।
तिमिर के तिरोहन से
पथ होता है शांत।
तब कहीं होती है
नव युग की शुरुआत।।
-अनुपमा उपाध्याय त्रिपाठी
*we do not own the illustrations. The art belongs to SL Haldankar.
अति-सुन्दर ����
जवाब देंहटाएंबड़ा ही मधुर है।
जवाब देंहटाएंसकारात्मक, उत्साहवर्धक और सत्य है।
जवाब देंहटाएं�� बहुत ही अच्छा लिखा है। ����
जवाब देंहटाएंभाभी! बड़ी ही अच्छी रचना है।
जवाब देंहटाएंHindi m aaj kal kavita bahut hi kam log likhe h.. Apki kavita m rhyming bhi h.. aapne bahut hi achha likha h.. padh k achha laga.
जवाब देंहटाएंThanks 😊😊
हटाएंबहुत ही खूबसूरती के साथ पिरोया है भावनाओं को इस कविता के माध्यम से
जवाब देंहटाएंजितनी प्रशंसा की जाए कम है
Thanks 😊😊😊😊
हटाएंBohot hi sundar kavita likhi hai apne!
जवाब देंहटाएंअद्भुत | Top Rated! Trending on Google.
जवाब देंहटाएंThanks 😊😊😊😊
हटाएंWow
जवाब देंहटाएंThanks 😊😊🤩🤩
जवाब देंहटाएंAti sundar
जवाब देंहटाएंThanks 😊☺️☺️☺️
जवाब देंहटाएंNice 🙂
जवाब देंहटाएंThanks 😊
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