अँधियारों के भटकाव तले
तू तेज़ रौशनी लौ की है।
तेरे सन्मार्ग पर चलकर हम
गिरते उठते फनकार भरे।
तू सृष्टा बन मेरे भीतर
अंकुर ज्ञान का भरता है।
इस अंकुर के प्रस्फुटन में
नव शोध वृक्ष पनपता है।
जब सघन वृक्ष की घनी छाँव
छतरी ताने फहराऊँगी ।
तब शायद तेरे ऋण से मैं,
गुरुवर मुक्त हो पाऊँगी।।
अनुपमा उपाध्याय त्रिपाठी
* we do not own the illustrations
अति उत्तम
जवाब देंहटाएंधन्यबाद
जवाब देंहटाएंWow!
जवाब देंहटाएंThanks
जवाब देंहटाएंBahut hi sunder Kavita
जवाब देंहटाएंBachpan ki yaadein taza ho gye
Thanks🙏
जवाब देंहटाएंDil ko chhu lene wali h ye kvita
जवाब देंहटाएंThanks 😊
जवाब देंहटाएंThanks 😊
जवाब देंहटाएंश्रेष्ठ पंक्तियाँ...👌👌💐
जवाब देंहटाएं