मिटा तमस मैं आगे बढ़ता
छँटता जाता अँधियारा।
चाहे धरती हो या अंबर ,
मुझको न हराते अँधियारा।
मैं तोड़ सभी बाधाओं को,
काले-काले अंधियारों को।
उन्माद भरी जो ब्याल रात,
को छंट देती ये किरण घात,
मेरे रश्मि तेरी ताकत ,
तेरी ओजस ये नयन अक्ष।
आलोकित होते गगन -न्यास ,
सब मिट जाते हैं गरल छाप।
छंट जाते सारे श्याह ताप,
मुखरित होते जब किरण साथ
तेरी हल्की सी पद -चाप ,
मिट जाते सारे अंधकार।
हो रोशन धरती -संग आकाश ,
पंक्षी करते हैं पथ मिलाप।
करते मिलाप उन कर्मों से ,
जो देती उनको हैं मुकाम।।
-अनुपमा उपाध्याय त्रिपाठी
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