पूरी दुनिया की सार है मां,
ब्रह्मांड की उन्नत काया मां ,
इस व्योम धरा की छांव है मां ,
यादों भावों की प्यास है मां ।
विचलित पथ की एक मार्क है मां ।
हर आहट की स्पर्श है मां ,
आंचल की शीतल छांव है मां ।
फूलों की मोहक गंध है मां ,
चिर परिचित सी स्पर्श है मां।
पीड़ा स्वर में चित्कार हैं मां,
हर पीड़ा में उपचार है मां ।
तारों की टिमटिम छांव है मां,
हर मुश्किल में एक ढाल है मां ।
चाहों की चटक सी छाप है मां ,
हर सीमा के उस पार है मां ।
हर रिश्ते के उस पार है मां ,
हर खुशियों की सौगात है मां ।
-अनुपमा उपाध्याय त्रिपाठी
*we do not own the illustration
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