रविवार, 11 अगस्त 2024

मां




पूरी दुनिया की सार है मां,

            ब्रह्मांड की उन्नत काया मां ,

इस व्योम धरा की छांव है मां ,

        यादों भावों की प्यास है मां ।

विचलित पथ की एक मार्क है मां ।

         हर आहट की स्पर्श है मां ,

आंचल की शीतल छांव है मां ।

          फूलों की मोहक गंध है मां ,

चिर परिचित सी स्पर्श है मां।

    पीड़ा स्वर में चित्कार हैं मां,

             हर पीड़ा में उपचार है मां ।

तारों की टिमटिम छांव है मां,

       हर मुश्किल में एक ढाल है मां ।

चाहों की चटक सी छाप है मां ,

        हर सीमा के उस पार है मां ।

हर रिश्ते के उस पार है मां ,

        हर खुशियों की सौगात है मां ।

                                                   -अनुपमा उपाध्याय त्रिपाठी 


*we do not own the illustration

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