लता
नरमी से झूलती लटकती ,
कभी इधर मचलती ,
कभी उधर थिरकती
तेरे रंगों की शोखी , हैरान क़र देती।
तेरी छुई -मुई सी टहनियाँ ,
इतनी विस्तारित होती।
बता देती यह राज -अपना ,
मै भी कुछ पनप लेती।।
मुस्कुराते लब्ज़ शालीनता के ,
वह लव्जों की छीटों से ,
मजबूत साथ उन शाखों की ,
सहारे की स्वीकृत ,
ले आगे बढ़ती।
नम्रता के पलको में ,
सीढ़ियों की पंक्ति से ,
अथाह सागर से ,
मोती ले जीवन के ,
धागों में गूंथती सी ,
आगे यूँ बढ़ती मै।
पुष्पित हो पल्ल्व संग ,
धारे से जुड़ती।
जीवन के हर -पल ,
अपने आँचल में समेटी।।
-अनुपमा उपाध्याय त्रिपाठी
*we do not own the illustration
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