व्यक्तित्व
मीठे- बोलो में बोलोगे,
मीठी- छुरी कहलाओगे।
खैर -खैरियत पूछोगे ,
स्वार्थ की- बू आये उनको।
कटु -वचन जब बोलोगे ,
काँटों के चुभन से गुजरोगे।
शब्दों के बाण चलाओगे,
तो बहसबाज़ कहलाओगे।
भावों की लम्बी छोड़ोगे ,
तो चापलूस कहलाओगे।
गुस्से को गर पी-जाओगे ,
सपोड़े का फन कहलाओगे।
छोड़ो तुम ! न सुनना इनकी ,
तुम बोलो वह जो सोचो तुम।
ढूढो -परखो अपनी खूबियां ,
खुद की तस्वीर बयान करो।
अच्छाई को स्पर्श करो ,
नीलांबर -सा तुम यूँ उभरो।
मत इनकी तुम परवाह करो ,
मत आना इनकी बातों में।
पहचान तुम्हारी पलट सके ,
उन लोगो से जरा सम्भलो तुम।
स्वाभिमान बना कर रखना तुम ,
पहचान बना कर रखना तुम।
न टूटो तुम इन कंकड़ से ,
आवारा हैं ये पत्थर भी।
जो तोड़ सके तेरी जमीं ,
न शीश -महल वो बनाना तुम।
फौलाद -ईट पहचान तुम्हारी ,
अपनी भूमि को सींचो तुम।
अंतर्मन के उन पत्थर से ,
कर वार- संघर्ष से निखरो तुम।
-अनुपमा उपाध्याय त्रिपाठी
*we do not own the illustrations. Source- fineartamerica.com
Bohot hi sunder kavita hai����
जवाब देंहटाएंSo thoughtful
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