ऋतु
हे सुनो ! रुको ! बैठो ना!
अभी तो सही।
गुनगुनी धूप तेरी,
भर लूँ हथेली में ,
हाथोँ को गर्मी से,
सेंक तो लूँ मैं।
हे सुनो! रुको ! बैठो ना !
अभी तो सही।
तेरा आना खामोश निशा है ,
अँधियारी छँटती ,
उजला ए समां है।
गुन-गुन दिन हैं,
हैं रात शरद की।
ठिठुरी सी निशा हैं।
रूक भी जाओ !
गुनगुन रश्मि तू !
बैठो ना क्षण भर -यूँ ही !
मत बढ़ना अब आगे तूँ।
रूक भी जा !
भर लूँ मैं।
रोशन दिन हैं, हैं चाह-भरे।
नरमी फितरत की ,
छाँव भी है।
ठहरो ! तुम ,रूक भी जाओ ,
हैं यह पल तो ,सुखद बहुत।
हैं साथ तेरा मीठा -पानी ,
अंबर में हैं जो तेरी लाली।
रुन -झुन धुनें है ,तेरी लाली।
चिड़ियों की चाह भी ,
तू हैं प्यारी।
ठहर जा तू अब ,
सुबह -सबेरा।
मत आना बन, पहर -दोपहरी।
ताप ए तेरा सह ना पाए ,
बिन पानी -पंक्षी मर जाये।
नदियां बिन पानी ,
बिकल हो चली।
धरती माटी की बिखर यूँ चली।
मस्त -महीना ही रहने दो ,
फाल्गुन माह को ,बस संजने दो।
प्रातः लाली -थम जा अब तू ,
मत लाना अब तुम दोपहरी।
संतप्त हृदय को ,भेदे जो।
नदियों का पानी सोखे जो।
बेचैन करे हर प्राणी को ,
मिटटी के नरमी को ,लुटे जो।
तुम मत आना अब ,ग्रीष्म कभी।
जिनसे राहें हों ए मुश्किल।
झरते -पत्ते कब अच्छे लगते ,
पतझङ किसको भाते है।
बिन -पतझङ ला सको -बसंत ,
तो आ -जाना तुम ग्रीष्म -मृदंग।
हाँ ! आ -जाना तुम ,
ग्रीष्म मलंग।।
- अनुपमा उपाध्याय त्रिपाठी
*we do not own the illustration
Wow
जवाब देंहटाएंThanks ☺️☺️
जवाब देंहटाएंAti sundar kalpna
जवाब देंहटाएं😊
हटाएंThanks
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