श्रम का मूल्य
श्रम का मूल्य
मखमली -घास पर चलना- चलते रहना,
पसंद है मुझको।
पर ! धरती -फाड़ श्रम-सिंचित बूंदे तेरी ,
द्रवित करती हैं मुझको।
सुंदर रेशम- से लिपटी तराशती-काया ,
मोह से मोहित करती है मुझको।
पर ! धागों की- चुभन से छिलती उँगलियों के ज़ख्म तेरे ,
मेरी आँखों में अश्क़ बन छलकतीं है जमीन पर।
ये तश्तरी -भर- खाने की लज़ीज़ स्वाद से लतपथ ,
चाटती हूँ मैं सराबोर हो उँगलियाँ अपनी।
पर ! रसोई में दिन -रात का समर्पण व निष्ठा तेरी ,
रौंद देते हैं मेरे सारे जज़्बात को।
मेरे मित्र ! तेरा श्रम व निःस्वार्थ संवेदना तेरी ,
झकझोरतीं हैं मेरे भोग -निष्ठ स्वार्थ को।
जिधर भी देखूं !,उधर ही तश्वीरें श्रमिक के शोषण की।
श्रमिक को रोटी नसीब नहीं ,भोगी को भोग का मूल्य नहीं।
भोगी तू कर ले श्रम थोड़ा आगे बढ़कर ,
जी ले जीवन "इनका" तू भी एक पल।
हाँ ! जी ले हम भी जीवन "इनका" एक पल।।
-अनुपमा उपाध्याय त्रिपाठी
Woww
जवाब देंहटाएंThanks 😊
जवाब देंहटाएंBeautiful 👌
जवाब देंहटाएंThanks 😊
जवाब देंहटाएंWow Mam, Bohot acha likha hai apne
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
हटाएंWah! Kya bhai h! Gaharai se likha h.. sanvedansheel ho Aap.
जवाब देंहटाएंThanks 😊 Gaurav
हटाएंBeautiful and massage delivering.
जवाब देंहटाएंThanks 😊 Garima
जवाब देंहटाएंबच्चो को पढ़ाने के लिए बोहोत अच्छा है।
जवाब देंहटाएंThanks
हटाएंकृपया और अच्छा पोस्ट करिए।
जवाब देंहटाएंप्रयास जारी रहेगा
हटाएंThanks for suggestion😊
हटाएंSandeshprad
जवाब देंहटाएंAMAZING!!
जवाब देंहटाएंThanks 😊
जवाब देंहटाएंGreat keep it up Anupama 👌
जवाब देंहटाएंThank you😊
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