शनिवार, 12 सितंबर 2020

बचपन



  बचपन 

वे फुरसत के दिन व  बचपन की यादें,
                      बहुत याद आती है काग़ज की नावेँ। 
वे रिमझिम सी बुँदे हथेली में लेना,
                  वो वायु के झोंको को महसूस करना। 
यूँ बारिश की बूँदो से खुद को भिगोना,
                 वो मिट्टी के खुशबू में खुद खो जाना। 
वो चिड़िया की चूँ-चूँ में खुद डूब जाना ,
                       यूँ तितली की रंगत से विस्मित हो जाना। 
न कल की फ़िक्र न चुभन कशिश की,
            बस बढ़ते कदम थे न राहें सीमित थीं। 
न टीवी की हलचल न गाड़ी की भगदड़,
                  जहाँ भी देखो वहीं मनोरंजन। 
वह दादी की बक -बक व तानों के सुर में,
                       बसते थे सारे शालाओं के सिलेबस। 
यूँ जीवन के सिलेबस सिखाती थी  दादी ,
                   नियमों का पालन करती थी दादी। 
न कोई किताबें न कोई पढ़ाई,
            यूँ जीवन के सिलबस कराती थी दादी। 
जीवन के हर पल थे शिक्षण के साधन,
       निर्णय परीक्षा व अनुभव ही दीक्षा। 
अनुभूति का अनुभव ही जीवन  के ग्रेड,
           संस्कारों के  बंधन से संजते संदेश।  

                                           अनुपमा उपाध्याय त्रिपाठी 


*we do not own the illustrations.

10 टिप्‍पणियां:

  1. बेहद खूबसूरत पंक्तियां ।।

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