पड़ाव उम्र का
देखो तुम आज बहुत सुंदर हो,
तुम्हारा रूप सलोना मुझे भाता है।
उभरती माथे की लकीरें,
बतातीं तेरा चिंतन।
तेरे परिपक्व लब्ज़ जो चटक पड़ गए ,
तेरे शब्दों की गहराई नापती।
तेरे मुस्कान की उभरतीं लकीरें भी ,
बयाँ करती सुख की सच्चाई सारी।
आँखों के नीचे ये जो काले धब्बे हैं ,
बयाँ करती ये नजरों की पहुंच भारी।
यूँ नाक को सिकोड़ झल्लाना तेरा,
यूँ शेर का दहाड़ सब पर भारी।
यूँ श्याह होठ व उभरतीं झुर्रियों की लकीरें,
बयाँ करती संबेदना सारी।
देखो तुम सुंदर बहुत हो ,
दिखने दो ये संगमी केश अपने।
बयाँ करने दो बदलाव अपने।
जो सफ़ेद हैं सहजता बयाँ करते हैं ,
जो काले हैं इन्हे रंगों में भीगने दो।
उम्र तो पड़ाव से गुजरता है ,
गुजरने दो, उभरने दो-मचलने को।
न रोको,न टोको ,बढ़ने दो,
बढ़ने दो इन्हे बढ़ने दो,
स्वयंम से संवरने दो।
मोहित हो महकने दो ,
मोदित हो मचलने दो।
उम्र के लकीरों को ,
खुले दिल से आने दो
संज के संवरने दो
खुद को समझने दो।।
-अनुपमा उपाध्याय त्रिपाठी
*we do not own the illustrations
BEAUTIFUL.....MIND BLOWING
जवाब देंहटाएंThanks
हटाएंAwesome
जवाब देंहटाएंThanks
हटाएंHer Kavita apne m anokha h or shabdo SE suder jal Buna h
जवाब देंहटाएंThanks
जवाब देंहटाएंAdbhut chitrn
जवाब देंहटाएंThanks 😊
जवाब देंहटाएंWow.... Nice thought 👏
जवाब देंहटाएंThanks
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