मां
मन तू मेरा एक दर्पण है,
तू सच्चा है तू प्रियतम है।
बतलाती काया की धड़कन,
हर धड़कन की तू स्पंदन।
हर अंगो को पहचाने तू,
हर आहट मेरी परखे तू।
नित साज़ लिए नव बोल लिए,
नव -गान से करता अभिनंदन।
तेरी ख़ामोशी भी मुझको,
ढूढ़े-सागर की मोती सी।
न जाने क्या -क्या ले चलते,
हर -मोड़ -राह पर पटके तू।
जब देखूं अपने अंगो को,
मां की तस्वीर बयां करे।
अपने भीतर उसकी छवि ही,
हर -धड़कन को महसूस करूं।
जब भी देखूं खुद गौर करूं,
तेरे ही चित्र उड़ेल चलूँ।
मेरे पावों की उँगलियाँ,
मां तेरे ही पद -चिन्ह लगे।
हर -कदम बढ़े पद -चिन्हों से,
हर -चाप में तेरे चिन्ह सँंजे।
माना की अब मैं तरुणी हूँ,
पर तू भी तो है तरुणी मां।
बस फ़र्क जरा सी हममें मां,
बस काया और जजबात तले।
तेरे हिस्से जितने मोती,
हर मोती तूने परखा मां।
जजबातों संग पिरोकर मां,
संबंधो में बांधा मुझको।
जब देखूं दर्पण में खुद को,
तेरी काया साकार मिले।
मुझको लगता मैं तुम ही हूँ,
मेरी राहें मेरे पद में।
जीवन के हर दर्पण में मां,
तेरा ही रूप साकार मिले।
तेरे प्यारे -मोहक छवि में,
हर पल मेरा विश्राम करे।
-अनुपमा उपाध्याय त्रिपाठी
*we do not own the illustrations.
Wow
जवाब देंहटाएंThanks
हटाएंBhut khoob
जवाब देंहटाएंThanks
जवाब देंहटाएंThanks
जवाब देंहटाएंBeautiful.....mind blowing
जवाब देंहटाएंThanks
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