आँसू
बादलों के बीच दामिनी बन कर,
घिर आती है गमों की बदली।
नैनों से नीर ओस की बूंदे बनकर,
टपक आती हैं पलको तलक।
मन का नगर बोझ सागर बन,
उमड़ती हैं हिंडोले लेकर।
आत्मा जब पंखुड़ी बन,
लुढ़का देती ओंस की बूंदे।
दिल में नई ज्योति बनकर,
बजा जाती हैं मधुर बीने।
फिर जाता है मन घुमड़कर,
मिट जाती है बदली दुःख की।
चांदनी के साथ फिर तो,
चाँद गाता नव मधुर।।
-अनुपमा उपाध्याय त्रिपाठी
*we do not own the illustrations. Art credited to pinterest community.
अद्भुत रचना
जवाब देंहटाएंThanks 😊
हटाएंMind blowing
जवाब देंहटाएंThanks
हटाएंVery Nice....EXCELLENT
जवाब देंहटाएंThanks
जवाब देंहटाएंNice
जवाब देंहटाएंThanks 😊
हटाएंATI ....khoob
जवाब देंहटाएं😊 Thanks
जवाब देंहटाएंBeutiful
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