बुधवार, 13 मई 2020

आँसू




आँसू

बादलों के बीच दामिनी बन कर,
घिर आती है गमों की बदली।
नैनों से नीर ओस की बूंदे बनकर, 
टपक आती हैं पलको तलक।
मन का नगर बोझ सागर बन, 
उमड़ती हैं हिंडोले लेकर।
आत्मा जब पंखुड़ी बन, 
लुढ़का देती ओंस की बूंदे।
दिल में नई ज्योति बनकर,
बजा जाती हैं मधुर बीने।
फिर जाता है मन घुमड़कर,
मिट जाती है बदली दुःख की।
चांदनी के साथ फिर तो, 
चाँद गाता नव मधुर।।

-अनुपमा उपाध्याय त्रिपाठी 


*we do not own the illustrations. Art credited to pinterest community.

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