शनिवार, 16 मई 2020

मां तू कितनी अच्छी है


मां तू कितनी अच्छी है

मां तू कितनी अच्छी है 
मां तू कितनी अच्छी है,
पतझड़ तू ही सहती है ।
मां तू कितनी अच्छी है ।।
नई कोपलें, नूतन कलिका,
पुष्प सृजन तू करती है ।
मां तू कितनी अच्छी है ,
पतझड़ तू ही सहती है ।।
रक्षा करती धुप तपन से,
हमे सींचती स्नेह बून्द से।
श्रृंग-गर्त उत्थान -पतन ,
तू धारण करती ,सहज प्रकृति से।
मां तू कितनी अच्छी है ,
स्नेह सभी को देती है।
पतझड़ अपने सहती है,
मां तू कितनी अच्छी है।।
हर पतझड़ की पीड़ा सहती, 
शाख -शाख से छाया करती।
शरद -शारदा की वीणा को,
ओढ़ बसंती झंकृत करती।
मां तू कितनी अच्छी है ,
नव वसंत जो देती है।
पतझड़ अपने सहती है।
मां तू कितनी अच्छी है।।
तूफ़ानो की पीड़ा सहती,
श्रांत हमे पाकर दुःख हरती।
हमे सुलाती थपकी देकर,
तपन मुक्त कर शीतल करती।
मां तू कितनी अच्छी है ,
तपन मुक्त जो करती है।
पतझड़ अपने सहती है ,
मां तू कितनी अच्छी है।।
पुष्प बिखेर कुपित जीवन को ,
नई गंध से प्रमुदित करती ।
मां तू कितनी अच्छी है,
प्रमुदित सबको करती है।
पतझड़ अपने सहती है,
मां तू कितनी अच्छी है।।
रात्रि -दिवस पोषित कर हमको,
कर देती नव -विटप मधु सा,
प्रमुदित होता हृदय सृजन का,
तुमको पाता प्रकृति वधु सा।
मां तू कितनी अच्छी है,
मधु बरसाती रहती है,
पतझड़ अपने सहती है।।
हे ममता प्रतिमूर्ति स्वरूपा!
मां तुझको है कोटि नमन ।
जनम-जनम मां गोद में लेकर ,
दो मुझको मधुहास पवन।
मां तू कितनी अच्छी है ,
द्वेष-कलह जो हरती है।
पतझड़ अपने सहती है ,
मां तू कितनी अच्छी है।।


                                      -अनुपमा उपाध्याय त्रिपाठी 



*we do not own the image. The illustration is a portrait credited to Brian Kirhagis

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