
नव युग की ओर ...
नव प्रभात नव सूरज बन ,
नव गगन की ओर।
जल प्रपात की लहरे बन कर ,
करें नए युग का सृजन ।
प्रमुदित हो मन मुखरित होकर ,
थाम जरा तू अब समय ।
पल -पल सींचे समय तुम्हे बन ,
माली बन इस वन -उपवन ।
तू भी बढ़ ले ,मैं भी बढ़ लूँ ,
यह चेतन जड़ और चमन ।
समय धरा पर मुखर हो चुका,
बढ़ चल अब तू हो तत्पर ।।
-अनुपमा उपाध्याय त्रिपाठी
*we do not own the illustrations. The art above was referenced from the pinterest community.
Good effort
जवाब देंहटाएंthank you :)
हटाएंWoww beautiful
जवाब देंहटाएंthank you☺
हटाएंWoww beautiful
हटाएं😊 Thanks
हटाएंसुन्दर रचना । लाजवाब।
जवाब देंहटाएं😊 Thanks
हटाएंबहुत ही प्यारी और सुंदर रचना है
जवाब देंहटाएंThanks
हटाएंIncredible
जवाब देंहटाएंThanks
हटाएंAdbhutt ; Avismaraniya
जवाब देंहटाएं😊 Thanks
हटाएंbohot sunder likha hai apne
जवाब देंहटाएंThanks
हटाएंThanks 😊
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