शुक्रवार, 10 अप्रैल 2020

नव युग की ओर ...


नव युग की ओर ... 


नव प्रभात नव सूरज बन ,
नव गगन की ओर।
जल प्रपात की लहरे बन कर ,
करें नए युग का सृजन ।
प्रमुदित हो मन मुखरित होकर ,
थाम जरा तू अब समय ।
पल -पल सींचे समय तुम्हे बन ,
माली बन इस वन -उपवन ।
तू भी बढ़ ले ,मैं भी बढ़ लूँ ,
यह चेतन जड़ और चमन ।
समय धरा पर मुखर हो चुका,
बढ़ चल अब तू हो तत्पर ।।

                                    -नुपमा उपाध्याय  त्रिपाठी 



*we do not own the illustrations. The art above was referenced from the pinterest community.

17 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही प्यारी और सुंदर रचना है

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