धुन के पक्के
मै चींटी हूँ ,
मै हूँ छोटी ,
पर अपने धुन की पक्की हूँ।
फहराऊंगी मै ध्वज -पताका ,
ले शीर्ष पहाड़ी शीर्ष- बिंदु
मै चींटी हूँ,
मै छोटी हूँ ,
पर अपने धुन की पक्की हूँ।
चाहें हो तेज हवाएं भी ,
चाहे रेतीली गर्म धूप।
अपने धुन के है पक्के हम ,
न विचलित होते तुमसे हम।
शाखें -टूटे या पत्थर भी ,
हम अडिग बढाते है कदम।
न रुकना सीखा है हमने ,
न पथ से भी विचलित होना।
लक्ष्य भेद इन आँखों में ,
सीखा है बस आगे बढ़ना।
मै चींटी हूँ ,
मै छोटी हूँ ,
पर अपने धुन की पक्की हूँ।
टहनी -टहनी को पाथ बना ,
हक से यूँ हम आगे बढ़ते।
न डरते हम रफ्तार हवा से ,
न झुकते हम इस धूप -ताप से ,
बाधाओं की करते चीड़- फाड़
ले आगे बढ़ ते लक्ष्य बाण।
मिलने को आतुर लक्ष्य बिंदु ,
बाहें फैलाये आकुल पल।
पहुंच पहाड़ी बिंदु शीर्ष ,
हाँ लुंगी दम मै गाड़ ध्वज।।
हाँ लुंगी मै दम गाड़ ध्वज।।
मै चींटी हूँ ,
मै छोटी हूँ ,
हाँ अपने धुन की पक्की हूँ।
- अनुपमा उपाध्याय त्रिपाठी
*we do not own the illustration
Bhut hi khubsurat vichar h aapki trh
जवाब देंहटाएंThanks 😊
जवाब देंहटाएं☺🙏🙏
Bahut badhiya
जवाब देंहटाएं🙏Thanks
हटाएंVery nicely expressed 👌👌
जवाब देंहटाएं🙏Thanks
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