शुक्रवार, 8 जनवरी 2021

लक्ष्य

 लक्ष्य



कागज़ की नौका से, 
                       मंजिल पार नहीं होती,
ढुलमुल इरादे से,
                      संग्राम नहीं होती। 
टूटे शमशीरे से,  
                      सैन्य वॉर नहीं होती। 
लक्ष्य आँखों में छपने वालों की, 
                     कभी हार नहीं होती। 
इरादे चट्टानों- सी लेकर ,
                     बना शमशीरें श्रम को तू। 
क़र युद्ध नाकामयाबी से,
                     फतेह ले आगे बढ़ के तू। 
क्योकि कोशिश करने वालों की,
                    कभी हार नहीं होती। 
कागज़ की नौका से,
                   मंजिल पार नहीं होती। 
रातें अँधेरी है तो क्या ?
               दीए भी लौ देगें जरूर। 
जला मशाले आश- की ,
                       जूनून से आगे बढ़ ले तू। 
क्योकि अकर्मण्य कदम से ,
                        राहें पार नहीं होतीं। 
सच्ची कोशिश की,
                   कभी हार नहीं होती। 
कागज़ की नौका से ,
            मंजिल पार नहीं होती।। 

                                               -अनुपमा उपाध्याय त्रिपाठी 


12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुन्दर और गहराई है आपकी रचना में! मैंने आपकी सभी रचनाएं पढ़ी हैं। बहुत अच्छा लगता है जब अपने ही बीच के किसी व्यक्ति की अभिव्यक्ति का पता चलता है कि वह इतना अच्छा लिख सकता है।........सुमन कर्ण

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  2. बहुत सुंदर और प्रेरणा दायक है 🙏

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