प्रिय
जीवन -राह में साये -सी,
पल -पल मैं यूँ बन जाऊँगी।
हर- दिन की प्रातः लाली -सी ,
चेहरे पर मैं छा जाऊँगी।
चिड़ियों की चहचहाहट में,
आहट मेरी ही पाओगे।
खिड़की से ये अंडे -चूजे,
यूँ याद मेरी ही सतायेंगे।
जितना ही दूर करोगे मुझको,
पास मैं उतना आऊँगी।
हर -धड़कन में साँसें बनकर,
जीवन -ज्योति बन जाऊँगी।
सबसे नहीं सिद्धांत यह - मेरा
पर तुझसे ऐसा क्यों है ?
जब भी यह पूछोगे खुद से,
तुम प्रियतम भाव ही पाओगे।
हाँ। प्रियतम- भाव ही पाओगे।।
-अनुपमा उपाध्याय त्रिपाठी
👌
जवाब देंहटाएंThanks 😊😊
हटाएंBohot sundar kavita ����
जवाब देंहटाएंThanks 😊😊
हटाएंक्या बात है.. क्या बात है.. क्या बात है |
जवाब देंहटाएंThanks 😊
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