ख्वाहिश ही जीवन
मन की किताब खोलूँ ,
तो ख्वाहिशों के पन्ने।
पन्नो पर अंकित शब्द ,
यूँ झूमते गज़ल हों।
मांझी भी तो तूं है,
पतवार भी तो तूं है।
जीवन तू है धारा,
पानी सा बहता पल है।
जीवन हमें बढ़ाती,
, यूँ तेज़ धार करके।
बढ़ता रहे तूं यूँ ही ,
ले ख्वाहिशों की डोरी ,
जीवन को इनसे- कस कर,
ले बढ़ ले- तूं बढ़ कर।।
-अनुपमा उपाध्याय त्रिपाठी
*we do not own the illustrations. The art belongs to Sara Riches
Wow
जवाब देंहटाएंThanks 😊😊😊😊😊
जवाब देंहटाएंWow..... Excellent poem��
जवाब देंहटाएं😊Thanks
जवाब देंहटाएंअल्फ़ाज़ दिल के काफी करीब से लग रहे हैं।
जवाब देंहटाएं😊 Thanks
हटाएंबहुत सुंदर,👍
जवाब देंहटाएं☺️Thanks
जवाब देंहटाएंNice poem
जवाब देंहटाएंThanks 😊 ma'am
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