अंतस्तल
सोचती हूँ मैं शांत व निश्चल,
क्यों हो जाता है अंतस्तल।
रे निश्चल !क्या राज़ है तेरा।
क्या पाई ! क्या पाई तूने मादकता।
तेरी मोदकता ! का रहस्य छिपा नहीं ,
हर कण -कण में तू रहा सही।
पर तेरी पूजा करता संसार ,
है नश्वर मायावी अल्फ़ाज़।
करता बुराई प्रेम की ,
मरता इन्ही के रेत से।
ये नश्वर मायावी संसार ,
तेरी पूजा करता दिन -रात।
नहीं जानता यह नादान,
क्या है तेरे मन का राज़।
डूबा लेता तू अंतस्तल को ,
मिटा देता मेरे अंतर्तम को।
दिखा देता है नई ज्योति ,
मिटा देता है मन का क्लेश।
मन घुमड़कर -उमड़ -उमड़ कर,
भिगो जाती ओसीली बूँदे।
नम कर देती हैं ये बूँदे ,
अधखिले सुमन उरवर को।
सूरज की नई प्रभा ,
खिला जाती सुमन रमां।
मिटा जाती हैं सारे क्लेश ,
भर जाते उर मधुर मिलन से।
चांदनी के साथ फिर तो ,
चाँद गता नव मधुर।।
-अनुपमा उपाध्याय त्रिपाठी
*we do not own the illustrations
Thanks 😊😊
जवाब देंहटाएंExcellent ��
जवाब देंहटाएंThanks
हटाएंGOOD...WOW
जवाब देंहटाएंThanks
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