काले बादल गर्जन करते
काले बादल गर्जन करते ,
माना की कोरोना क़ायम है ,
यूँ अर्थ- व्यवस्था घायल है।
रातें अँधेरी फैली हैं,
काले बादल भी घेरे हैं।
बिजली भी यूँ खिखियाती हैं ,
बच्चे-बूढ़े भी आहत हैं।
ये रात अँधेरी मिट जाएगी ,
सूरज फिर से चमकेगा।
बादल तेरी इस गर्जन को ,
तरकश ले सूरज निकल चला।
काले बादल अब छिप ले तू ,
तेरी गर्जन को चुप करने ,
लो बढ़ ले आभा प्रकट हुई।
तेरे किस हिस्से में बिजली ,
कोइ मुझको बतला तो दे ,
ले बटन दबा यूँ मुक्त करूं ,
जिससे बच्चे डर जाते हैं,
उन घिरते काले बादल से ,
पानी की थैली मैं ले लूँ ,
ले कृषक की तकती आँखों को ,
पानी की थैली मैं दे दूँ।
इन प्यासी धरती कण -कण को ,
झम -झम बारिश से मैं भर दूँ।।
हाँ! उर्वरता से इनको भर दूँ।।
अनुपमा उपाध्याय त्रिपाठी
*we do not own the illustrations.
Wow
जवाब देंहटाएंThanks 😊☺️☺️☺️
जवाब देंहटाएंFantastic 😘😍
जवाब देंहटाएंThanks 😊😊😊😊
हटाएं������������bohot hi sundar kavita��������
जवाब देंहटाएंThanks 😊☺️☺️☺️
हटाएं����������
जवाब देंहटाएंVery nice
जवाब देंहटाएंThanks 😊😊😍😍
हटाएं👏👏👏😊😊
जवाब देंहटाएंThanks 😊☺️☺️☺️
हटाएंBEAUTIFUL POEM
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