चित्त
न सुर है, न ताल।
न लय है, न लावण्यता।
पल -पल बजती है जो,
वह है चित्त की चंचलता।
बाँधू मैं, तो बिखरे ये।
पकड़ूँ मैं तो भागे ये।
जकड़ू मैं, तो फैलता जाये।
रोकूं मैं तो चलता जाये।
छोड़ दूँ तो थिरकता है,
नए ताल बजाता है।
नीरव ताने छेड़े तत्क्षण,
जब खो जाता मन अंतस्तल।
मन हो जाये जब भी खिन्न,
कर देता तत्क्षण ये मलीन।
कोई दे सकता क्या ऐसा,
जिसमे हो,चित्त की स्थिरता।
रहूँ शांत, पर प्रेम उद्वेलित।
छूं कर भी न हो नीरवत।।
-अनुपमा उपाध्याय त्रिपाठी
*we do not own the illustrations.
👏👏
जवाब देंहटाएंthank you so much
हटाएंसरल, सुंदर , अदभुत
जवाब देंहटाएंधन्यवाद :)
हटाएंgood
जवाब देंहटाएंthank you :)
हटाएं