ये आँखें भी कुछ कहतीं हैं
मेरी-आँखें,उनकी-आँखें।
इनकी-आँखें ,सबकी-आँखें।
निःशब्द सँजे,हर बोल लिए।
ये आँखे,सब कुछ कहतीं है।
मां-की-आँखें,कुछ ख्वाब सँजे।
स्नेही मधुरम,श्रृंगार करे।
मीठी-मीठी,मुस्कान लिए।
मां-की-आँखें,कुछ कहतीं हैं।
सुधार भरे,कटु-वार करे।
तिरछे नयनो से,वार करे।
कटु-तार लिए,भेदे मुझको।
संभलने को,तैयार करे।
मेरी-आँखें,उनकी-आँखें।
इनकी -आँखें,उनकी-आँखें।
इन-आँखों की,क्या बात करूं।
हर-पल ये,कुछ -कुछ कहतीं हैं।
पापा की नजरें, घूरे यूँ।
नव-जोश भरे, नव प्राण भरे।
तत्पर करती, कर्मठता को।
श्रम करने का, आग़ाज़ भरे।
मेरी-आँखें, उनकी-आँखें
इनकी-आँखें, सबकी-आँखें।
नजरों के भाव, थपेड़े भी।
पल-पल मुझसे, कुछ कहतीं हैं।
भाई-बहनों,की नजरें भी।
वर्चस्व लिए, हुँकार भरे।
निःशब्द सने, उन बोलो में।
न जाने क्यों, धमकाते हैं।
मेरी-आँखें, उनकी-आँखें।
इनकी-आँखें, सबकी-आँखें।
निःशब्द सँजे, मन-की-आँखें।
तस्वीरों को, समझातें हैं।
मित्रों की बातें, क्या बोलूं?
इनकी- आँखें, क्या कहतीं हैं।
ना-बोले, ये ना-बात करें।
इमोजी में, सब बयाँ करें।
मेरी-आँखें, उनकी-आँखें।
इनकी-आँखें, सबकी-आँखें।
इन-आँखों की, दस्तूर मैं क्या।
चंद लब्ज़ो, में बयाँ करूं।
मां मेरी, रीढ़ की हड्डी हैं।
तो ब्रेन मेरा, हैं पापाजी।
भाई-बहनें, मेरी-आँखें।
तो मित्र मेरा, बहता-पानी।
रिश्तें-सारे ही, मधुरम हैं।
इनकी खुशबू में, मैं सन लूँ।
आबाद हों, इनकी नजरें भी।
गुलशन मेरा, आबाद करें।
मुझे-प्रेम करें, मुझे-स्नेह भी दें।
अपने-मधुरम, इन नजरों से।
इन नजरों की, मैं कायल हूँ।
भीगूँ-डूबूँ , इन नजरों मे।।
अनुपमा उपाध्याय त्रिपाठी
*we do not own the illustrations
👌
जवाब देंहटाएंSabhi prakar ki aankho ka itna sunadr varnan....super👌👌
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !!!!
हटाएंअदभुत 👏🏻👏🏻👏🏻
जवाब देंहटाएंअद्वितीय👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻
जवाब देंहटाएंThank you so much
हटाएंअविस्मरणीय 👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻
जवाब देंहटाएंHer Kavita ek dusre SE juda ek dusre SE anokha .SB ek SE ek badhker
जवाब देंहटाएंThanks
हटाएं👏👏👏👏
जवाब देंहटाएंThanks
हटाएंBahut achcha anupama
जवाब देंहटाएंThanks
हटाएंIMPRESSIVE POEM
जवाब देंहटाएंThanks
हटाएंAti sundr
जवाब देंहटाएंबोहोत गहरी सोच।
जवाब देंहटाएंThanks 😊
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